Chalo Yaha Se Chale Aur Umra Bhar Ke Liye!!!
"ये सर्द हवा कुछ इस क़दर छू रही है मुझे, जैसे रूह की दहलीज़ पर आकर इश्क़ ने दस्तक़ दी हो " पहाड़ों की सर्द फ़िज़ा में जहाँ पूरा शिमला बर्फ़ की चादर से ढका हुआ था वहीं शहर से दूर बसे एक गाँव में कोई इस नज़्म की रुबाइयों को गुनगुना रहा था| हिमालय की गोद में बसे इस गाँव पर खुदा की कुछ ऐसी इनायत थी कि गुज़रते वक़्त के साथ यहाँ की हर एक शाम बेहद दिलकश और रंगीन हो जाती थी| 28 दिसंबर का वो दिन, जब सर्दी अपने पूरे शबाब पर थी, कुछ अलग ही किस्म के रंग लेकर आया था| कुछ ऐसे रंग जिन्हे हम, न जाने कितनी दफ़ा देखते हैं मग़र महसूस नहीं करते, कुछ ऐसे रंग जिनका असर सबसे ज़्यादा हमारे जज़्बातो पर होता है| All India Radio के शिमला केंद्र पर सरफ़राज़ खान का शो "एहसास-ए-ग़ज़ल" शुरू हो चुका था ओर करोड़ो लोगों की तरह एक बुज़ुर्ग महिला अपने घर के बरामदे में बैठीं उस शो को सुन रहीं थीं | नज़्म की एक-एक रुबाई किसी अधूरे इश्क़ की तरन्नुम सी महसूस हो रही थी, जिस पर खुदा की नवाज़िश रही हो| अपने प्रोग्राम को आगे बढ़ाते हुए सरफ़राज़ ने एक कॉलर की फरमाइश को पूरा किया और पहला गीत पेश किया:- साहिर लुधियानवी की
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