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Sochta Hu Kuchh Likhu Tumhare Liye!!!

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"सोचता हूँ! कुछ लिखूँ तुम्हारे लिए  मगर क्या, ज़हन में ये सवाल हज़ार बार आया |  क्या कुछ ऐसा है, जो रह गया हो  कुछ ऐसा, जिसे मैंने नज़र-अंदाज़ किया हो  या कुछ ऐसा, जो मैं चाहकर भी  तुम्हारे लिए लिख न पाया  सोचता हूँ! कुछ लिखूँ तुम्हारे लिए  मगर क्या, ज़हन में ये सवाल हज़ार बार आया ||  कोई ऐसा किस्सा, जिसमें तुम्हारी मौज़ूदगी हो  या फिर एक लम्हा, जिसमें तुम्हारा साथ हो  या फिर, इन सबसे बेहतर  शायद वो वक़्त जो तुम्हारी आहटों पर  थम गया हो|  सोचता हूँ! कुछ लिखूँ तुम्हारे लिए  मगर क्या, ज़हन में ये सवाल हज़ार बार आया |||  किसी नज़्म की रुबाइयों में डूबी  तुम्हारे ज़िक्र की आवाज़ें, या तुम्हे ग़ज़लों में तलाशते मेरी फ़िक्र के साये, या फिर इन सबसे बेहतर  तमाम मासूम चेहरों पर बिखरी, उन बेपरवाह मुस्कानों में  जिन्हे देखकर, मेरी आँखें सिर्फ तुम्हे ढूंढती हों |  सिर्फ और सिर्फ तुम्हे ढूंढती हों | |  सोचता हूँ! कुछ लिखूँ तुम्हारे लिए  मगर क्या, ज़हन में ये सवाल हज़ार बार आया ज़हन में ये सवाल हज़ार बार आया".......... 

Sitaron ki Jhilmilahat!!!!

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Dear Dhoop...

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Dear Dhoop, Jab tum mujhe  Halke se chhooti ho na By God, achhi lagti ho.. Kabhi to intezar me Kabhi gulshan bahar me Tum haule se aati ho Aur chhukar 'sarsarati' ho Achhi lagti ho. Sard mausam ki fiza me Tumhari rangat kuchh aur hai Tez me shaleenta ki Ye ibadat kuchh aur hai Is tarah chamkogi tum To deewane badhte rahenge Khil khilakr has padogi To fasane bante rahenge Mujhko bhi ye ilm hai Tum mujhe hi dekhti ho, Dear Dhoop, Achhi lagti ho!!!!! A short poem for my love "Sunshine"....

Chalo Yaha Se Chale Aur Umra Bhar Ke Liye!!!

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"ये सर्द हवा कुछ इस क़दर  छू रही है मुझे, जैसे रूह की दहलीज़ पर आकर  इश्क़ ने दस्तक़ दी हो " पहाड़ों की सर्द फ़िज़ा में जहाँ पूरा शिमला बर्फ़ की चादर से ढका हुआ था वहीं शहर से दूर बसे एक गाँव में कोई इस नज़्म की रुबाइयों को गुनगुना रहा था| हिमालय की गोद में बसे इस गाँव पर खुदा की कुछ ऐसी इनायत थी कि गुज़रते वक़्त के साथ यहाँ की हर एक शाम बेहद दिलकश और रंगीन हो जाती थी| 28 दिसंबर का वो दिन, जब सर्दी अपने पूरे शबाब पर थी, कुछ अलग ही किस्म के रंग लेकर आया था| कुछ ऐसे रंग जिन्हे हम, न जाने कितनी दफ़ा देखते हैं मग़र महसूस नहीं करते, कुछ ऐसे रंग जिनका असर सबसे ज़्यादा हमारे जज़्बातो पर होता है| All India Radio के शिमला केंद्र पर सरफ़राज़ खान का शो  "एहसास-ए-ग़ज़ल" शुरू हो चुका था ओर करोड़ो लोगों की तरह एक बुज़ुर्ग महिला अपने घर के बरामदे में बैठीं उस शो को सुन रहीं थीं |  नज़्म की एक-एक रुबाई किसी अधूरे इश्क़ की तरन्नुम सी महसूस हो रही थी, जिस पर खुदा की नवाज़िश रही हो| अपने प्रोग्राम को आगे बढ़ाते हुए सरफ़राज़ ने एक कॉलर की फरमाइश को पूरा किया और पहला गीत पेश किया:- साहिर लुधियानवी की

Mayoor Ke Pankh

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इंतज़ार !!!!! इस शब्द को सुनते ही कई लोगों के चेहरे पर मायूसी के काले बादल मंडराने लगते हैं पर यकीन मानिये उर्दू भाषा का यह शब्द जितना दिलकश है, इसकी तासीर भी उतनी ही खूबसूरत है|  बेशक़! हर शख्स की ज़िन्दगी में इस शब्द के मायने अलग हो सकते हैं लेकिन कहीं न कहीं इस शब्द का ठहराव हर इंसान की ज़िन्दगी में होता है|  इंतज़ार का अर्थ है प्रतीक्षा और यही प्रतीक्षा तो हमें स्तिरथा के गुण सिखाती है| यह उस अनंत सागर की तरह है जिसकी ना ही कोई सीमाएं हैं और ना ही कोई गहराई बल्कि ये तो वो सुन्हेरा सफर है जिसमे यात्री अपनी मंज़िल से ज़्यादा यात्रा से प्रेम करता है|  ये कहानी है इंतज़ार में गुज़रे उस वक़्त की जिसके पैमाने भले ही छोटे हों मगर गहरायी इतनी ज़्यादा है की उनमे सदियाँ बीत जायें| ये कहानी है शिव, शालिनी और मयूर के इंतज़ार की| आप चलना चाहेंगे मेरे साथ इस सफर पर? चलिए चलते हैं||  शहर के सबसे मशहूर स्कूल, St. Stephens Higher Secondary School, में जब शिव को दाखिला मिला तो उसके पूरे परिवार में खुशियाँ आ गयीं| शिव तेराह साल का था और पढ़ाई लिखाई से ज़्यादा उसे खेलना पसंद था| बचपन कितना खुशमिज़ाज होता है,

Sitaron Ki Jhilmilahat

कभी कभी शायद  ये सोचने की ज़रूरत नहीं पड़ती है कि आपके साथ अच्छा-बुरा या फिर सही-गलत क्यों हो रहा है! प्रकृति आपको किसी न किसी तरह से, कोई न कोई इशारा ज़रूर देती है और शयद ये समझाने की कोशिश भी करती है कि जो कुछ भी हो रहा है उसे, उसी तरह से सिर्फ होने दो| उस रात मौसम अच्छा था| बारिश के कारण थोड़ी सी ठण्ड बढ़ गयी थी| मैं  छत पर पंहुचा तो ठंडी हवा से मुझे थोड़ा हल्का महसूस हुआ जैसे धूप से तपते हुए शरीर पर पानी की बौछार पड़ गयी हो और राहत ने हलकी सी दस्तक देकर कहा हो की घबराओ नहीं, मैं हूँ न तुम्हारे साथ | यूँ तो इतनी गर्मी भी नहीं थी मगर न जाने क्यों मुझे ही घुटन महसूस हो रही थी |  शायद उसकी याद ने मुझे एक बार फिर किसी द्वन्द में फंसा दिया था | ये मेरा अपना ही अनुभव हो सकता है लेकिन मुझे हमेशा से ये लगता आया है  की हम जिस किसी शख्स से भी प्यार करते हैं उसकी यादों का एक हिस्सा हर पल हमे उसकी याद दिलाता रहता है | मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही घट  रहा था |  न चाहते हुए भी किसी की यादों का अचानक आ जाना कष्टदायक होता है लेकिन मुझे अब इस दर्द की आदत सी हो गयी थी |  खैर! मैंने खुले हुए आसमान की ओर देखा और