Chalo Yaha Se Chale Aur Umra Bhar Ke Liye!!!

"ये सर्द हवा कुछ इस क़दर 
छू रही है मुझे,
जैसे रूह की दहलीज़ पर आकर 
इश्क़ ने दस्तक़ दी हो "

पहाड़ों की सर्द फ़िज़ा में जहाँ पूरा शिमला बर्फ़ की चादर से ढका हुआ था वहीं शहर से दूर बसे एक गाँव में कोई इस नज़्म की रुबाइयों को गुनगुना रहा था| हिमालय की गोद में बसे इस गाँव पर खुदा की कुछ ऐसी इनायत थी कि गुज़रते वक़्त के साथ यहाँ की हर एक शाम बेहद दिलकश और रंगीन हो जाती थी| 28 दिसंबर का वो दिन, जब सर्दी अपने पूरे शबाब पर थी, कुछ अलग ही किस्म के रंग लेकर आया था| कुछ ऐसे रंग जिन्हे हम, न जाने कितनी दफ़ा देखते हैं मग़र महसूस नहीं करते, कुछ ऐसे रंग जिनका असर सबसे ज़्यादा हमारे जज़्बातो पर होता है| All India Radio के शिमला केंद्र पर सरफ़राज़ खान का शो  "एहसास-ए-ग़ज़ल" शुरू हो चुका था ओर करोड़ो लोगों की तरह एक बुज़ुर्ग महिला अपने घर के बरामदे में बैठीं उस शो को सुन रहीं थींनज़्म की एक-एक रुबाई किसी अधूरे इश्क़ की तरन्नुम सी महसूस हो रही थी, जिस पर खुदा की नवाज़िश रही हो|अपने प्रोग्राम को आगे बढ़ाते हुए सरफ़राज़ ने एक कॉलर की फरमाइश को पूरा किया और पहला गीत पेश किया:- साहिर लुधियानवी की कलम से "अभी न जाओ छोड़कर, के दिल अभी भरा नहीं " 

कानों में इस गीत के लफ़्ज़ कुछ ऐसे गूँज रहे थे जैसे अतीत का हर लम्हा संजीदगी से एक दास्ताँ बयान करना चाहता हो| आँखें खुलने की इजाज़त नहीं दे रही थी मगर जब थोड़ा ज़ोर दिया तो हल्की नमी के साथ अश्क़ उनकी पैरवी करने लगे, जैसे किसी दर्द को छिपाने की कोशिश कर रहें हो| बंदिशे तोड़कर जब भी तकलीफ बाहर आती है तो कुछ लम्हे हमारे अपने नहीं होते हैं, बल्कि उन यादों के होते हैं जिनसे हमारी तकलीफ जुड़ी हो और ये यादें मृत्युशैया तक हमे अकेला नहीं छोड़ती हैं| आँसुओ को पोछते हुए जब उन्होंने अपना सिर ऊपर उठाया तो फ़िज़ा में बहती ठण्डी हवा ने उनका माथा चूम लिया| उस सर्द हवा में उन्हें किसी की आवाज़ महसूस हुई जिसे सुनकर उनकी धड़कने थमने लगी| हिम्मत करके वो अपनी Wheelchair से उठीं और उस आवाज़ की ओर बढ़ने लगीं, जैसे एक उम्र गुज़ार दी हो इस आवाज़ की तलाश में| मगर कुछ कदम चलते ही वो गिर गयीं और उन्होंने उस आवाज़ की तबस्सुम को हवा में विलीन होते हुए महसूस किया|अपनी तलाश को दर्द ने आवाज़ दी:- "रुको ! रुको !
आरव्य !!! "

सांसे थम रहीं थी और प्राण अभी भी शरीर को त्यागने में संघर्ष कर रहे थे| सामने से भागते हुए आए एक शख्स ने उस बुज़ुर्ग महिला को अपनी बाहों में समेटते हुए आवाज़ दी:-
Mom!! क्या हुआ आपको??? उठिये Mom!! Mom!!!!
झिलमिलाती हुई उन बूढ़ी आँखों में लाल रंग और थोड़े से पानी के सिवा और कुछ भी नहीं था| रजत अब तक समझ गया था की उसकी माँ कि हालत बेहद नाजुक़ थी| घबराहट में वो चिल्लाया:-"श्याम काका"!!!

शाम अब ढल चुकी थी| बर्फ़बारी से मौसम हद से ज़्यादा ठण्डा हो गया था| रजत दूर कहीं आसमां में कुछ ढूंढ रहा था कि तभी उसे अपने कंधे पर किसी का स्पर्श महसूस हुआ| उसने पीछे मुड़कर देखा, तो पायल खड़ी थी| पायल को देखते ही उसकी आँखे भर आयी| रजत की आँखों को पढ़ने का हुनर पायल ने बचपन में ही सीख लिया था| उसने रजत को संभालते हुए पूछा:- ये सब कैसे हुआ?
मुझे नहीं पता ये सब फिरसे क्यों हो रहा है! फिर वही नाम, फिर वही आवाज़!, रजत ने कहा| 
आरव्य ???; पायल ने चौंकते हुए पूछा| 

थोड़ी देर बाद रजत के फैमिली डॉक्टर, Dr.Sharma, ने रजत और पायल दोनों को एक दूसरे कमरे में बुलाया और बोलना शुरू किया, "रजत बेटा! तुम्हारी माँ को Hyperthymesia है| ये एक ऐसी बीमारी है जिसमे इंसान अपने अतीत को हर पल जीता है| आम भाषा में कहूं तो तुम्हारी माँ अपने अतीत से खुद को अलग नहीं कर पा रही है| इसलिए वो बार-बार किसी आरव्य को पुकारती है| सिर पर गहरी चोट लगी है, Her condition is critical. हम २४ घंटों के बाद ही कुछ कह सकते हैं|"

अगले दिन Mrs.Singhania को शिमला के सबसे बड़े हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया| जहाँ देश के बड़े-बड़े neurosurgeons ने उनका इलाज शुरू किया लेकिन शायद किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था| Mrs.Singhania कोमा में जा चुकी थी और डॉक्टर्स ने सब कुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ दिया था| रजत बुरी तरह से टूटने लगा था जैसे अपना सब कुछ धीरे-धीरे खो रहा हो| 

"रजत! मुझे अभी भी लगता है कि aunty ठीक हो सकती हैं लेकिन उन्हें वापस लाने में सिर्फ एक ही इंसान हमारी मदद कर सकता है|", पायल ने रजत की ओर देखते हुए कहा| 
रजत की आँखों में चमक सी आ गयी| वो पायल की तरफ मुड़ा और बोला:- मेरे हर मर्ज़ की दवा तुम्हारे पास ही क्यों होती है? पायल कुछ बोलना चाहती थी लेकिन रुक गयी| 
आरव्य को ढूंढते हैं, उसने कहा| 

आरव्य की तलाश में 10 महीने बीत गए थे| Singhania और उनसे जुड़े हुए परिवारों में दूर-दूर तक भी किसी ने आरव्य का नाम नहीं सुना था| रजत और पायल एक ऐसे शख्स को ढूंढ रहे थे जिसका शायद कोई अस्तित्व ही नहीं था| फिर भी रजत हार मानने को तैयार नहीं था| एक दिन सुबह श्याम काका रजत के पास एक संदूक लेकर आये और उसे देते हुए उन्होंने कहा:- "रज्जू!! बचुआ ये बक्सा हमे 3 दिन पहले मिला था, दीदी के कमरे की सफाई करते समय| देख ले, शायद तेरे काम आये"| ऐसा लग रहा था की श्याम काका रजत को कुछ बताना चाहते थे मगर किसी ज़ंजीर की बंदिशों ने उन्हें बाँध रखा था| 
रजत ने संदूक पर लगे ताले को हथौड़ी से तोड़ा और फिर उसे खोला| संदूक में उसे एक शादी का जोड़ा, कुछ गहने और एक किताब मिली| तब तक पायल भी घर आ गयी थी| रजत और पायल ने सफ़ेद कपड़े में लिपटी उस किताब का पहला पन्ना खोला और पढ़ना शुरू किया:-

"Dear Rajat,

आज तुम पूरे 8 साल के हो गए हो | तुम बिलकुल अपनी माँ पर गए हो  |
मुझे पता है कि जब तुम्हे ये डायरी मिलेगी तब मैं दूर कहीं आकाश से तुम्हे देख रहा होऊंगा | मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा | रजत !! मेरी एक अधूरी ख्वाहिश है जिसे सिर्फ तुम पूरा कर सकते हो और मुझे पूरा यकीन हैं की तुम उसे ज़रूर पूरा करोगे | लेकिन उससे पहले मैं तुम्हे एक कहानी सुनाना चाहता हूँ | एक ऐसी कहानी जिसके बिना मेरी और तुम्हारी माँ की ज़िन्दगी अधूरी  है | 

"आरव्य और धरा की कहानी "

रजत और पायल दोनों को ही अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था| जिस इंसान को वो पिछले 10 महिनों से ढूंढ रहे थे, रजत के पिता उसे कैसे जानते थे? आखिर कौन थे ये आरव्य और धरा जिनके बारे में पूरी Singhania फैमिली उन्हें कुछ भी बताना नहीं चाहती थी| रजत ने अगला पन्ना खोला और फिरसे पढ़ना शुरू किया:-


आज 14 जुलाई है| कॉलेज का पहला दिन| 
सभी फ्रेशर्स को सुबह 9 बजे Central Auditorium में खातिरदारी के लिए बुलाया गया था| इस खातिरदारी को सामान्य भाषा में रैगिंग कहते हैं| रैगिंग एक ऐसी पौराणिक परम्परा है जिससे आज भी मज़लूम और मासूम फ्रेशर्स भयभीत हो जाते हैं| थर्ड ईयर के स्टूडेंट्स ने इस कार्य का शुभारंभ किया| लड़को को मुर्गा, उल्लू, हाथी और न जाने क्या-क्या बनाया जा रहा था और लड़कियों से गुलाब के फूल का रंग पूछा जा रहा था| मेरा बस चलता तो इन सीनियर्स के ऊपर atom bomb फोड़ देता| नामाकूल कहीं के| 

अगला नंबर मेरा ही था| मुझसे सब्ज़ी बेचने को कहा गया| "Have they completely lost it? "Ranveer Singhania सब्ज़ी बेचेगा?"
 लेकिन सीनियर्स की तादाद ज़्यादा होने के कारण मुझे सब्ज़ी बेचनी ही पड़ गयी| मुझे सब्ज़ी बेचते हुए देखकर एक लड़की बहुत ज़ोर-ज़ोर से हँस रही थी| ये लड़की और कोई नहीं बल्कि मेरी सबसे अज़ीज़ दोस्त और तुम्हारी माँ Shanaya थी| Manners क्या होते हैं, ये Shanaya Raichand ने कभी सीखा ही नहीं| बस जो दिल में आया सो बोल दिया, जो मन में आया वो कर दिया| कॉलेज की सबसे खूबसूरत लड़की थी, मेरी शनाया|| 

जब शनाया को स्टेज पर बुलाया गया तब मैं बहुत खुश था, लगा की अब तो ये गयी| मगर हमारे सीनियर्स तो उसकी कैट वाक देखकर फुल टाइम फ्लैट हो गए थे| मुझे इन नामुरादों पर बहुत गुस्सा आ रहा था| अपनी हाई रेटेड परफॉरमेंस देने के बाद वो मेरे पास आयी और बोली:- "मुझे नहीं पता था की तुम इतनी अच्छी सब्ज़ी बेचते हो|" मैंने गुस्से से उसे घूरते हुए देखा, "शन्नू !!! तू तो गयी बेटी!!!"

जब तक मैं उसे पकड़ पाता स्टेज पर एक दूसरी लड़की आ गयी और हम दोनों बहुत ध्यान से उसे देखने लगे| सुन्दर नयन-नक्श, हलके सुनहरे बालों वाली ये लड़की Raichand family की छोटी बेटी थी| 
"धरा "!!!!
जितना सुन्दर नाम उतनी ही खूबसूरत आवाज़ जैसे साक्षात् माँ सरस्वती उसके कण्ठ में विराजी हों| 
उसकी आवाज़ में इतना सुकून था की उसे सुनने वाला हर शख्स अपने दुःख-दर्द, मोह-माया सब कुछ भूल जाता था| धरा ने स्टेज पर पहुंचकर माँ सरस्वती को याद किया और फिर गाना शुरू किया:- 
"ये रातें ,ये मौसम , नदी का किनारा, ये चंचल हवा "

ये पहली बार था जब धरा इतने सारे लोगों के सामने कोई गीत गा रही थी| हड़बड़ाहट में वो उस गीत की पंक्तियाँ भूल गयी| उसकी घबराहट उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी| थोड़ी देर में ही सीनियर्स ने रैगिंग के असली रंग दिखाने शुरू कर दिए| उपहासना भरे तंज़ों से वो धरा का आत्मविश्वास तोड़ रहे थे| 
उसकी आँखों से मोटे-मोटे आंसू बहने लगे| इससे पहले कि मैं और शनाया स्टेज पर पहुँचते एक शख्स लोगों की उस भीड़ से उठकर स्टेज पर पंहुचा और धरा को रुमाल देते हुए बोला:- "मजरूह सुल्तानपुरी जी का गीत अश्क़ो के साथ नहीं बल्कि मुस्कराहट के साथ गाना चाहिए"||| 
इतना कहकर उसने उस गीत की पंक्तियों को गुनगुनाना शुरू किया:-




सितारों की महफ़िल में करके इशारा 
कहा अब तो सारा जहाँ हैं तुम्हारा 
मोहब्बत जवाँ हो , खुला आसमां हो 
करे कोई दिल आरज़ू और क्या 




धीरे-धीरे धरा ने गाना शुरू किया और जब गाना ख़त्म हुआ तो पूरा auditorium तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा| गीत ख़त्म होते ही वो शख्स वहाँ से जाने लगा लेकिन धरा ने उसे Thank You बोलकर रोका| एक हलकी सी मुस्कान के साथ उसने अपना सिर झुकाया| 
"आपका नाम?", धरा ने पूछा| शायद वो नहीं जानती थी कि ये नाम उसकी ज़िन्दगी को पूरी तरह बदलने वाला था| 

"आरव्य !!! आरव्य भारद्वाज !!!!"

वो मुस्कुराया और चला गया| 


किसे पता था की इन दोनों की तक़्दीरों में क्या लिखा था| आरव्य का स्वाभाव बेहद शांत था जैसे किसी दरख़्त का ठहराव हो जो बिना किसी हलचल के अपनी पूरी ज़िन्दगी सुकून से गुज़ार देता है| एक 19 बरस का लड़का अपने साथ कुछ किताबे लिए मिलता था जिनमे साहिर लुधियानवी की नज़्मे, हरिवंश राय बच्चन जी की कवितायें और एक गुमनाम शायर की ग़ज़लें थी| वही धरा का स्वरुप, आरव्य से भी ज़्यादा निखरा हुआ था| धरा बेहद खूबसूरत थी| उसकी आवाज़ में वो कशिश थी जो किसी रोगी की काया को ठीक कर दे, जिसे सुनकर इंसान खुद-ब-खुद उसकी ओर खींचा चला जाये| आरव्य को धरा की आवाज़ पसंद थी और धरा को उसकी शायरी| दिन बीतते गए, वक़्त गुज़रता गया और उन दोनों को ये पता ही नहीं चला कि कब वो एक दूसरे के लिए कुछ ज़्यादा ख़ास हो गए|

कॉलेज से थोड़ी ही दूरी पर राधा-कृष्ण जी का मंदिर था और मंदिर के पीछे ही एक छोटा सा पार्क था जहाँ अक्सर लोग शाम को कविता सम्मेलन किया करते थे| धरा हर शाम को आरव्य की शायरी सुनने आती थी| 

"आरव्य! तुम्हारी आँखे मुझसे वो कहती हैं जो तुम्हारे शब्द नहीं कह पाते हैं!", धरा ने कहा| 
मेरी आँखों पर PhD जो कर रखी है आपने Ms.Raichand!! - आरव्य हस्ते हुए बोला| 
कितनी बार कहा है तुमसे की मुझे धरा कहकर बुलाया करो, लेकिन तुम हो की...... - धरा रूठते हुए बोली| 
तुम जानती हो न की तुम्हारी फैमिली हमारे रिश्ते के लिए कभी भी राज़ी नहीं होगी:- आरव्य ने कहा| 
आरव्य की बात सुनकर धरा की आँखें नम हो गयी जैसे उसे पता था की ये एक ऐसी ख्वाहिश थी जो कभी पूरी नहीं हो सकती थी| आरव्य ने उसका हाथ थामते हुए कहा:-

"तुम्हे पता है धरा, राधा जी का विवाह अनय से हुआ था और कृष्ण जी का रुकमणी से| शिव ने सती से विवाह करके भी उन्हें खो दिया था फिर भी लोग सदैव इनकी प्रेम गाथाओं का उदहारण देते हैं| 
इस शब्द(प्रेम) का अर्थ ही इसकी अपूर्णता में छिपा हुआ है| ये जितना अधूरा है उतना ही पूरा है| 
मेरे जीवन में तुम्हारा महत्व उस हवा की तरह है जिसके बिना साँस लेना भी संभव नहीं है लेकिन इस हवा को मैं सिर्फ महसूस कर सकता हूँ इसे समेट नहीं सकता| मैं रहूँ या न रहूँ, मेरा इश्क़ हमेशा रहेगा| मेरी कविताओं में, मेरी नज़्मों में, मेरे दिल की धरा में|"

धरा ने अपने आँसुओं को पोछते हुए आरव्य से कहा:- "कल मुझे गिफ्ट में क्या दोगे तुम?"
"कोशिश करूँगा तुम्हारे लिए कोई कीमती तोहफ़ा ला सकू|":- आरव्य ने कुछ मायूस होकर कहा| 
"तुम्हारे शब्द अनमोल हैं आरव्य! और तुम इस दुनिया के सबसे धनी इंसान हो":- धरा ने कहा| 
"कल साहिर को ले आना धरा! एक अरसे से तुम्हारी आवाज़ में उनका ज़िक्र नहीं मिला":- आरव्य
"तुम साहिर को मुझसे ज़्यादा चाहते हो?"- धरा ने गुस्से में पूछा| 
आरव्य को हँसी आ गयी| 

"साहिर का इश्क़ अधूरा है धरा और अधूरा इश्क़ क़ामिल होता है| कही न कही मैंने भी इस अधूरेपन को महसूस किया है इसीलिए साहिर पसंद है| जिस तरह तुम लता मंगेशकर जी को मुझसे ज़्यादा चाहती उसी तरह साहिर की ग़ज़लें और नज़्में, मेरी पहली मोहब्बत हैं|"- आरव्य 
तुम्हें साहिर से निक़ाह कर लेना चाहिए - धरा ने गंभीर स्वर में बोला| 
लता जी से तुम्हारी शादी करवाके मैं और साहिर कश्मीर शिफ्ट हो जायेंगे - आरव्य अतिगंभीरता से प्रतिउत्तर देकर भागने लगा| 
"आरव्य के बच्चे!!! आज तुम्हारी चटनी न बना दी तो मेरा नाम धरा रायचंद नहीं|"- धरा उसके पीछे भागने लगी| 
आरव्य ज़ोर-ज़ोर से हस रहा था| 

28 दिसंबर मेरे लिए हमेशा से एक ख़ास दिन रहा है| इसी दिन Mom and Dad की marraige anniversary होती है और इसी दिन शनाया और धरा का जन्मदिन भी होता है| इसे इत्तेफ़ाक़ कहे या फिर ईश्वर की दया की शनाया के चाचा-चाची को शनाया के जन्म के ठीक एक साल बाद 28 दिसंबर को ही धरा मिली थी| 

शाम घिरने को आयी थी और पार्टी लगभग शुरू हो चुकी थी| Raichand Mansion की सजावट उसके राजघराने होने का प्रतीक दे रही थी| धीरे-धीरे मेहमानों की भीड़ में इज़ाफ़ा हो रहा था जैसे पूरा शिमला आज इस राजघराने की दावत में शामिल हुआ हो| मैं वक़्त से थोड़ा पहले ही पार्टी में पहुंच गया था| शनाया का इंतज़ार कर रहा था लेकिन जब वो धरा के साथ पार्टी में आयी तो सबकी नज़रे उन दोनों पर ही टिक गयी| आज दोनों ने ही लाल रंग की साड़ी पहनी हुयी थी| मैंने सोच लिया था कि आज शनाया को अपने दिल की बात बता दूंगा और मुझे पूरा यकीन था की उसका जवाब- हाँ होगा| केक काटने के बाद सभी मेहमान शनाया और धरा को गिफ्ट्स दे रहे थे|शनाया बहुत खुश थी लेकिन धरा की आँखें मेहमानों की भीड़ में आरव्य को तलाश रहीं थी| 

आरव्य कुछ देरी से पार्टी में पंहुचा था| सफ़ेद रंग के कुर्ते-पैजामे पर नीले रंग की सदरी उसकी आभा को और भी रौशन कर रही थी| धरा ने जैसे ही उसे देखा तो वो मुँह बनाते हुए उसके पास पहुंच गयी| उसके साथ-साथ मैं और शनाया भी आरव्य के पास जा पहुंचे| 
अपनी जेब से आरव्य ने चाँदी की दो अलग अलग पायल निकाली और उन दोनों की तरफ बढ़ा दी| 

"माँ ने तुम दोनों के लिए ये तोहफा भेजा है"- आरव्य
"It's so beautiful!! Thank you Aaravya" - शनाया ने कहा| 
"बहुत खूबसूरत है ये! माँ मेरी पसंद जानती हैं- धरा 
आरव्य की आँखों में एक चमक सी आ गयी| 
उसने धरा से पूछा:- अपना promise याद है न तुम्हे?
कौन सा promise? धरा ने आरव्य की चुटकी लेने की कोशिश की| 
ये अच्छी बात नहीं है धरा| :- आरव्य रूठते हुए बोला| 
धरा को हसी आ गयी| बाहर से जितने भी बड़े लगने की कोशिश करो, अंदर से तुम बच्चे ही हो :- धरा ने आरव्य के गाल खींचते हुए कहा| 

सुना है कि साहिर के हर गीत में कशिश-ए-इश्क़ की एक दास्ताँ होती है| आइये एक ऐसी ही दास्ताँ को सुनते हैं!!!!!
अभी न जाओ छोड़कर , के दिल अभी भरा नहीं !!!!

धरा के इलहान(सुरीली आवाज़) में आरव्य कुछ ऐसा खोया था कि उसे पता ही नहीं चला की गीत कब खत्म हो गया| तालियों की गड़गड़ाहट से उसका ध्यान टूटा| शनाया ने आरव्य के पास जाकर उससे कहा:-"आरव्य!! कुछ सुनाओ न| बहुत दिनों से तुम्हारी शायरी नहीं सुनी|"
आरव्य ने धरा को देखा| धरा भी उसे ही देख रही थी| अपनी भर आयी आवाज़ को ठीक करते हुए उसने कहा:- "आज मेरे पास लफ्ज़ो की कमी है लेकिन फिर भी मैं धरा की तारीफ में चंद शब्द कहना चाहता हूँ"

"इतनी सलासत से तुम्हारी आवाज़ ने 
मेरे दिल पर दस्तक दी है,
जैसे बारिशों में भीगी शबनम को 
तज़ामत समेटती है | 

किसी ग़ज़लसरा को जब कभी 
सुनने की ख्वाहिश हुई 
ख़ुशवक्त हुए हम 
जो आपकी नवाज़िश हुई ,

वरना ज़माने में फिरते रहे थे 
पर वो नूर हमको न मिला 
नजासत भरे हुनर की 
हर जगह नुमाइश हुई ,,

मेरे दिल की फ़क़ीरी 
आपकी दरग़ाह ढूंढती है 
जैसे बारिशों में भीगी शबनम को 
तज़ामत समेटती है | 

जैसे बारिशों में भीगी शबनम को 
तज़ामत समेटती है ||"

आरव्य ने इतने ठहराव के साथ अपने मन की बात कही थी कि पार्टी में मौजूद हर एक शख्स मंत्रमुग्ध होकर उसकी शायरी सुन रहा था| 
बस इतना ही कहना था मुझे|- आरव्य
पूरा रायचंद मैनशन आरव्य के लिए तालियां बजाने लगा| दिल की बातों को लफ़्ज़ों की नज़ाफत(पवित्रता) के साथ कहना आरव्य को अच्छी तरह से आता था| धरा उसके पास आयी और बस उसे देखती रही|
लफ्ज़ अपनी बात कह चुके थे, अब आँखों को बातें करनी थी| 

मैंने शनाया को इशारे से बुलाया और उससे कहा:- कुछ बात करनी है तुमसे| बाहर चलें?
बाहर क्यूँ? जो बोलना है यहीं बोलो - शनाया ने शरारत भरे अंदाज़ में मेरी टाँग खींची| 
Shannu yar please! चल न!! कुछ ज़रूरी बात करनी है - मैंने कहा| 
अच्छा ठीक है| - वो बोली| 

थोड़ी देर बाद मैं और शनाया एक लॉन्ग ड्राइव के लिए निकले| शनाया ने मुझसे गाड़ी की चाभी ले ली थी और वो तेज़ी से गाड़ी चला रही थी| मैंने उससे स्पीड स्लो करने को कहा लेकिन उसने हसी में मेरी बात टाल दी| जब हम कृष्ण मंदिर के पास पहुंचे तब मैंने फिर उसे गाड़ी स्लो करने के लिए कहा| उसने ब्रेक लगाने की कोशिश की मगर ब्रेक लगे नहीं| मेरा गला सूख गया| 
कहीं वो ब्रेक फेल करने की बात सच तो नहीं थी| मैंने गाड़ी कण्ट्रोल करने की कोशिश की मगर स्पीड इतनी ज़्यादा थी की कार बुरी तरह से डिस्बैलेंस हो गयी थी| इससे पहले की मैं कुछ कर पाता गाड़ी ने वहाँ खड़े दो लोगों को बुरी तरह से टक्कर मार दी और सामने वाले बरगद के पेड़ से जा लड़ी| उसके बाद जब मुझे होश आया तो कुछ लोग मुझे और शनाया को शायद एम्बुलेंस से हॉस्पिटल ले जा रहे थे|  


लेकिन जिन दो लोगों को हमारी गाड़ी ने बुरी तरह से रौंदा था वो और कोई नहीं बल्कि आरव्य और धरा थे | 



हमारी तरह वो दोनों भी पार्टी ख़त्म होने से पहले बिना किसी को बताये Raichand Mansion से बाहर आ चुके थे| गाड़ी की टक्कर लगने से आरव्य बहुत ज़ोर से कहीं दूर जा गिरा| धरा के पेट से बुरी तरह से खून बहने लगा और जब तक वो आरव्य के पास पहुंची वो खून से लतपत था| अपनी गोद में उसका सिर रखकर वो उसके दर्द को कम करने की कोशिश करने लगी| आँखों से खून और पानी एक साथ बह रहा था| 

धरा को अपने नज़दीक लेकर वो बोला :- शायद मेरा इश्क़ भी आज क़ामिल हो गया| 
धरा बेतहाशा रोये जा रही थी| उसे समझ में ही नहीं आ रहा था की आखिर ये सब हो क्या रहा है? 
आरव्य ने अपने हाथ को उसके गाल पर रखकर कहा :- "धरा!! ये लोग हमारे प्यार को कभी समझ नहीं पाएंगे| अमीरी और नफ़रत की ज़ुल्मत ने इन्हे अँधा बना दिया है| ये दुनिया हमारे लिए नहीं बनी है धरा| चलो कहीं और चलते हैं|"

धरा के पेट से रिस्ता खून उसके दर्द और बेहोशी की वजह बन रहा था| उसने आखिरी बार आरव्य को देखा और बेसुध होकर गिर गयी| आरव्य भी अपनी आखिरी साँसे ले रहा था| भरी हुयी आवाज़ और आँखों में आँसू लिए उसने धरा का माथा चूमा और धीरे से उसके कान में कहा:-

यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है,
चलो यहाँ से चले और उम्र भर के लिए!!!!

आरव्य की साँसे हमेशा हमेशा के लिए थम गयी और क्षितिज बनकर भी उसने अपनी धरा को खो दिया| राधा-कृष्ण जी के समक्ष दो प्रेमियों का ऐसा मिलन तो स्वयं देवताओं को भी नसीब नहीं हुआ था| शायद ईश्वर ने उनके प्रेम को अपूर्ण रखकर उन्हें पूर्ण कर दिया था| 

7 दिनों बाद जब  शनाया की आँखें खुली तो उसने खुद को हॉस्पिटल में पाया| वो हैरान थी की वो आखिर यहाँ कर क्या रही है? परिवार के लोग और मैं उसके होश में आने पर काफी खुश थे| कुछ महीनों बाद मेरी और शनाया की शादी हो गयी| दोनों परिवार हमारी शादी से बहुत खुश थे लेकिन शनाया अब बिलकुल बदल गयी थी| लता मंगेशकर जी के गाने सुनती थी, साहिर की नज़्मों में सुकून ढूंढती थी और आरव्य के इश्क़ में उसकी जोगन बन गयी थी| 

हाँ उस रात एक्सीडेंट में गाड़ी के शीशे का एक बड़ा टुकड़ा शनाया के सीने में चुभा था जिसकी वजह से उसके दिल में छेद हो गया था| तब पूरे परिवार की सहमति से हमने धरा का दिल शनाया को दिया था| परिवार की इज़्ज़त बचाने के लिए आरव्य और धरा को हमेशा हमेशा के लिए इतिहास के पन्नो से मिटा दिया गया| मगर लाख कोशिशों के बावजूद भी शनाया के पिता, आरव्य और धरा को अलग नहीं कर पाए| 
Hyperthymesia होने की वजह से शनाया को खुद की, धरा की और आरव्य की एक-एक बात मुंहज़ुबानी याद थी| धरा के पिता आरव्य को बिल्कुल भी पसंद नहीं करते थे| उन्हें गरीबों से सख्त नफ़रत थी और उनका ऐसा मानना था कि आरव्य- धरा से नहीं बल्कि उनकी बेशुमार दौलत से प्यार करता है| 

आरव्य को धरा से अलग करने कि लाख कोशिशें की थी उन्होंने लेकिन धरा की ज़िद्द के आगे वो हर बार हार जाते थे| 28 दिसंबर की रात उन्होंने ही उड़ गाड़ी के ब्रेक्स फेल करवाए थे जिसे अक्सर धरा इस्तेमाल करती थी| परिवार की इज़्ज़त के आगे अपनी खुद की बेटी को भी कुर्बान करने में उन्हें कोई संकोच नहीं था| जिस वक़्त मैं गाड़ी की चाभी ढूंढ रहा था मैंने धरा के पिता को एक आदमी से बात करते हुए सुना था| 

वो धरा के Dad हैं Ranveer!! वो ऐसा क्यों करेंगे?, खुद से यही सवाल करके मैंने अपनी बेचैनी को शांत कर लिया था| लेकिन ईश्वर की लाठी में आवाज़ कहाँ होती है, जिस आरव्य को वो खत्म करना चाहते थे उसकी आवाज़ आज भी शनाया के कानों में गूंजती है| अपनी जिस बेटी को उन्होंने परिवार की इज़्ज़त के आगे क़ुर्बान कर दिया उसका दिल आज भी शनाया में धड़कता है| 

जिस शनाया को आरव्य और धरा से जुड़ी एक-एक बात याद थी वो ये भूल गयी थी कि उन दोनों का एक्सीडेंट उसी के हाथों हुआ था| 

मुझे पता है की एक दिन पायल तुम्हारे जीने की वजह होगी| उससे उतना ही प्यार करना जितना आरव्य ने धरा से किया, जितना धरा ने आरव्य से किया| 

मैं जानता हूँ कि शनाया के लिए मेरा प्यार कमज़ोर था लेकिन ताउम्र मैंने सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी माँ का इंतज़ार किया है, अपनी शनाया का इंतज़ार किया है| 

रजत!! मेरी बस इतनी इच्छा है कि तुम अपनी माँ की अस्थियों को राधा-कृष्ण मंदिर के पीछे बने ज्योति-स्मारक पर विसर्जित करो| आरव्य और धरा का मिलन वहीं होना चाहिए| 

Blessings & Love

Your Dad!!! 

रजत और पायल ज़ार-ज़ार रो रहे थे| इश्क़ की ऐसी दास्ताँ उन्होंने पहले कभी नहीं सुनी थी|
आज 28 दिसंबर है| शनाया इस दुनिया को अलविदा कह चुकी है| दोनों परिवारों में ग़म का माहौल है| सभी लोग शनाया की अंतिम यात्रा में शरीक हो रहे हैं| रजत ने भावुक मन से अपनी माँ को पंचाग्नि दी और शनाया पंचतत्व में विलीन हो गयी| 

कुछ दिन बाद रजत और पायल शनाया की अस्थियों को ज्योति-स्मारक पर विसर्जित कर देते हैं| 
अस्थियां विसर्जित करने के बाद रजत पायल को ज़ोर से गले लगा लेता है और कहता है:- "तुम मेरी वो धरा हो जिसे मैंने कभी भी अपना नहीं समझा| मुझे माफ़ कर दो| मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ पायल|"
पायल हमेशा से यही तो सुन्ना चाहती थी| दोनों एक साथ रोने लगे| 

थोड़ी देर बाद जब दोनों पास वाली बेंच पर बैठे तो रजत ने पायल से कहा:- "मेरे I Love You का जवाब तो दे दो"||
उसने रजत की तरफ देखा और बोली:-

"ज़िन्दगी में रंग तुम्हारी दोस्ती से मिले हैं 
मगर खुशरंग हो गयी हूँ 
कशिश-ए-इश्क़ की नक़्क़ाशी से "

रजत कुछ देर के लिए कोमा में चला गया| पायल ने चुटकी बजाकर उसका ध्यान तोड़ा| 
"Lady Sahir!!आपके चरण कहाँ हैं?" रजत ने पूछा| 

मैं आरव्य की फैन हूँ| - पायल ने कहा| 

तुम्हारे Dad हमारे रिश्ते के लिए तैयार होंगे? - रजत ने कुछ उदास होकर पूछा| 
शायद नहीं||क्योकि ये दुनिया नफ़रत के लिए जितनी बड़ी है, प्यार के लिए उतनी ही छोटी| बचपन में हर कोई हमे प्यार करना सिखाता है और जब हम प्यार करना सीख जाते हैं तब वही लोग हमसे नफ़रत करने लगते हैं| बहुत confusion है यहाँ पर शायद इसीलिए आरव्य ने दुष्यंत कुमार  जी की उस ग़ज़ल को दोहराया था| :- पायल 
"कौन सी ग़ज़ल?", रजत ने उत्सुकता के साथ पूछा| 
वो हसी और बोली:- 

"यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है। 

चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए "!!!!!





[पायल ,रजत को लेकर कहीं भाग गयी है | वो जानती है कि उसके पिता रजत और उसके रिश्ते के लिए कभी भी राज़ी नहीं होंगे | तो क्या पायल और रजत भी आरव्य और धरा की तरह एक दूसरे का इंतज़ार करेंगे या फिर पायल के शैतानी दिमाग में कोई नया आईडिया है?
इन दोनों की लव स्टोरी को ज़रूर पढ़िए इस कहानी के अगले अध्याय में , जिसका शीर्षक है :-

मन की आवाज़ और दिल के लिफाफे  ]













 


  

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